Santo ki sangati ka Phal : सत्संग के बारे में बात करें इससे पहले सत्संग शब्द का अर्थ समझ लेते हैं।
सत्संग दो शब्दों से मिल कर बना है। सत् और संग। जहां सत् का अर्थ है – सत्य, वहीं संग का अभिप्राय संगति से है।इन दोनों शब्दों को मिलाकर बनता है सत्संग, मतलब परम सत्य की संगति, गुरु की संगति और ऐसे व्यक्तियों के समूह या सभा की संगति जो सत्य सुनती है, सत्य की बात करती हैं और सत्य को ही स्वीकार और आत्मसात् करती हैं।
इंसान की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह हमेशा एक दुविधा में फंसा रहता है। उसके सामने अक्सर एक ऐसी परिस्थिति खड़ी हो जाती है, जहां पर वह समझ नहीं पता कि क्या करूं क्या और क्या ना करूं? वह अपने आप को एक ऐसी परिस्थिति में फँसा हुआ पाता है, जहां उसका दिमाग़ जैसे काम करना ही बंद कर दिया हो।वह अपने आप को कोई निर्णायक निर्णय लेने की अवस्था में नहीं पाता। जिसके फलस्वरुप वह अक्सर गलत निर्णय ही ले लेता है।
ऐसी विकट परिस्थिति से निकालने में एक गुरु की संगति हमेशा से काफी सहायक सिद्ध होती आयी है।सत्संग जीवन को निर्मल और पवित्र बनाता है।सत्संग मन के बुरे विचारों और पापों को दूर करता है। संतों की संगति मूर्खता को हर लेती है और वाणी में सत्यता का संचार करती है। संत ऐसे होते हैं जो स्वयं दुःख सहकर दूसरों को दुखों से मुक्ति दिलाते हैं, संत अपने शिष्यों के दुःखों का निवारण करते हैं, जिसके कारण संत हमेशा जगत में पूज्यनीय और वंदनीय माने गए हैं।
संत के बारे में गोस्वामी तुलसीदास जी के विचार –
सत्संग के बारे में और संतों की संगति के बारे में समझाते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है –
बिनु सतसंग विवेक न होई, राम कृपा बिनु सुलभ न सोई,
सतसंगत मुद मंगल मूला , सोई फल सिधि सब साधन फूला।
सत्संग के बिना कोई विवेक नहीं होता और श्री राम जी की कृपा के बिना वह सत्संग सहज में नहीं मिलता।सत्संगति ही आनंद और कल्याण की जड़ है। सत्संग की सिद्धि ही फल है और सब साधन ही तो फूल है।
संत और सत्संग की महिमा –
सत्संग की महिमा इतनी जबरदस्त है की दुष्ट भी सत्संगी का साथ पाकर सुधर जाते है। जैसे कि पारस का स्पर्श पाकर लोहा भी सोना बन जाता है वैसे ही अच्छे संतों की संगति में चाहे कैसा भी इंसान हो वह सुधर ही जाता है।
संतों का ना तो कोई मित्र होता है और ना ही कोई शत्रु वे हर किसी को समान भाव से देखते हैं और सभी का समान भाव से कल्याण चाहते हैं। संत सरल हृदय और जगत के हितकारी होते हैं उनके हृदय में सभी के लिए समान रूप से स्नेह होता है।
संत और असंत में अंतर –
जिस तरह से समाज में लोगों का भला चाहने वाले लोग होते हैं, समाज का कल्याण चाहने वाले लोग होते हैं, जिन्हें संत कहा जाता है। वैसे ही असंत भी होते हैं । जो असंत स्वभाव के लोग होते हैं, वे दूसरों को हानि पहुंचाने में ही अपना आनंद ढूंढते हैं । असंत लोग दूसरों को उजाड़ने में, उनको बर्बाद करने में काफी हर्ष और आनंद महसूस करते हैं, और दूसरों की खुशी में बिषाद, जलन और पीड़ा महसूस करते हैं। इसी संदर्भ में तुलसीदास जी ने कहा है-
उपजहिं एक संघ जग माहीं, जलज जोंक जिमि गुन बिलगाहीं,
सुधा सुरा सम साधु असाधू , जनक एक जग जलधी अगाधू।
संत और संत दोनों जगत में एक साथ ही पैदा होते हैं, मगर उनके गुण भिन्न-भिन्न होते हैं। संत का साथ जहां पर सुख देता है वहीं पर असंत का साथ जोंक की तरह रक्त चूसने जैसा होता है।
साधु जहां अमृत के समान मृत्यु रूपी संसारों से उबारने वाला होता है, वहीं असाधु मोह, माया और बंधनों में बांधने वाला होता है मगर दोनों को उत्पन्न करने वाला संसार एक ही है।
गुण और अवगुण में भेद करना सीखें
इंसान चाहे भला हो या बुरा, सभी के सभी ब्रह्मा जी के द्वारा पैदा किए हुए हैं। गुण और दोषों के आधार पर वेदों ने उनको अलग-अलग कर दिया है। इसीलिए कहा गया है कि ब्रह्मा जी की यह सृष्टि गुण और अवगुणों से भारी पड़ी है। ये हर इंसान पर खुद निर्भर करता है कि वह अपने आप को किस श्रेणी में रखना चाहता है, और उसका यह चुनाव ही या तो उसे उत्थान की तरफ ले जाता है या फिर पतन की तरफ।
इसी बात को और अच्छे तरीके से समझाते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में कहा है कि –
सम प्रकाश तम पाख दुहुं नाम भेद विधि किन्ह, ससि सोषक पोषक समुझि जग अपजस दीन्ह।
हर महीने में दो पखवाड़े होते हैं मतलब 15 दिन का उजियाला होता है और 15 दिन का अंधेरा होता है, और दोनों ही समान अवधि के होते हैं परंतु विधाता ने उनके नाम में भेद कर दिया है। एक का नाम शुक्ल और दूसरे का नाम कृष्ण रख दिया है। मतलब एक चंद्रमा को बढ़ाने वाला और दूसरे को घटाने वाला कहा गया है।
इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए खुद ही सही चुनाव करना चाहिए कि प्रगति के मार्ग पर अग्रसर बने रहने के लिए संतो का चुनाव करना चाहिए या असंतो का चुनाव करके अपने अंदर अवगुणों को विकसित करना है। सही निर्णय हमेशा इन्सान को सही रास्तों पर चलने के लिए प्रेरित करता है।
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