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Sita Mithila ki Yoddha Book Summary

Book Chaska के इस लेख में Amish Tripathi के रामचंद्र सिरीज़ के बुक में से “Sita – Warrior of Mithila” की किताब जिसका अनुवाद उर्मिला गुप्ता ने – “Sita Mithila ki Yoddha” के नाम से किया है,इसकी चर्चा करने वाले हैं।

Sita Mithila ki Yoddha – Introduction

इतिहास, पुराण और दर्शन में विशेष रुचि रखने वाले अमीश त्रिपाठी की योग्यता उनके लेखन शैली में साफ़ झलकती है।अमीश की किताब  “Sita Mithila ki yoddha” रामायण की शृंखला पर आधारित ज़रूर है, और इस के सभी पात्र भी रामायण से लिए गए है, लेकिन यह रामायण का पूर्णकथन बिल्कुल भी नहीं है।इसी की वजह से कुछ लोंगो को यह उपन्यास बिल्कुल भी पसंद नहीं आती।

अगर वाल्मीकि रामायण या गोस्वामी तुलसीदास रचित श्री  राम चरित मानस की बात करें तो सीता जी को राजा जनक की बेटी, राम की ऐसी पत्नी के रूप में जानते हैं, जो कि राम के साथ वनवास का जीवन जीया, अग्नि परीक्षा दी, अयोध्या वापस आने के पश्चात वापस उन्हें वन में छोड़ दिया गया। जहां उन्होंने लव कुश को जन्म दिया। उसके बाद उन्होंने धरती माँ का आहवाहन करके धरती में समा गई।

आज तक सीता माता के व्यक्तित्व को इसी संदर्भ में देखा गया है और चित्रण किया गया है। लेकिन अमीश की इस किताब “Sita Mithila ki ek yoddha” के बारे में कह सकते हैं कि ये अमिश की आँखों से देखी गई रामायण है, जिसमें वो सीता जी को एक योद्धा के रूप में देखते है। 

Sita ek Yoddha ke roop me

अगर आप इसे एक Novel के रूप में पढ़ेंगे तो अमिश की लेखन शैली से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते, लेकिन अगर आप रामायण और श्री राम चरित मानस से तुलना करते हुए देखते हैं तो आप को निराश ही होना पड़ेगा। 

इस किताब “Sita Mithila ki yoddha” की कहानी सीता के बचपन से लेकर, उनके बाल्यावस्था और रावण द्वारा उनके हरण तक चलती है और साथ में गुरु वशिष्ठ द्वारा राम को और गुरु विश्वामित्र द्वारा सीता को विष्णु के पद के रूप में स्थापित करने के इर्द गिर्द चलती है। आइये कुछ महतवपूर्ण अंश को देखते हैं।

सीता हरण

कहानी की शुरुआत सीता जी द्वारा वनवास के समय वन में केले के पत्तों को काटने से होती है। वो वन में मकरंत के साथ भोजन में प्रयोग करने के लिए केले के पत्तों को काट रही होती हैं। तभी रावण द्वारा हमला कर दिया जाता है। जिसमें मकरंत को रावण के सैनिक के द्वारा तीर लगने से मौत हो जाती है। सीता जी आवाज़ के आधार पर वार करने में काफ़ी निपुण थी। रावण के सैनिक दिखाई नहीं दे रहे थे, इस लिए सीता जी ने आवाज़ के आधार पर, एक सैनिक के ऊपर अपने चाकू को फेंक कर वार किया, चाकू सीधे सैनिक के गले पर जाकर लगा। वो वही धराशायी हो गया।

सीता जी ने उस सैनिक के धनुष को उठा लिया, और तरकश भी ले लिया।तरकश में कुछ ही तीर बचे थे। वो सीधे अपने शीविर की तरफ़ भागी, जहां पर सभी मारे जा चुके थे, सिर्फ़ जटायु और दो सैनिक घायल अवस्था में जीवित थे। रावण और उसका भाई कुम्भकर्ण कुछ दूरी पर खड़े थे। वो जटायु से विष्णु यानी सीता के बारे में पूछ रहे थे, जो उस वक्त वहाँ नहीं थी।सीता के द्वारा छुप कर वार करने से रावण के सैनिक मारे जा रहे थे और सीता के पास तीर भी नहीं बचे थे, तभी खर ने बोला, “महान विष्णु आप बाहर आइये, हम आप को हानि नहीं पहुँचायेगें और जटायु को ज़िंदा छोड़ देंगे।” 

जटायु की जान बचाने के लिए सीता जी बाहर आयी, मगर सीता के बाहर आते ही, खर ने अपने चाकू से जटायु पर वार किया, तुरंत ही सीता जी ने खर के आँखों पर तीर चलाकर उसी वक्त खर को मौत के घाट उतार दिया।

तभी कुम्भकर्ण ने बोला, “ये मुझे जीवित चाहिए”।सीता जी काफ़ी संघर्ष करती रहीं और राम जी को पुकारती रहीं। अंततः रावण के सैनिकों ने सीता जी को ऐसे नीम के पत्ते को सूंघा कर बेहोस कर दिया, जिस पर नीले रंग का लेप लगा हुआ था। उसके बाद सीता जी को रावण के सैनिकों ने रावण के पुष्पक विमान में बैठा दिया। फिर सारे सैनिक और रावण वहाँ से चले गए।

इस किताब “Sita Mithila ki yoddha” के इस प्रथम अध्याय में दिए गए सीता अपहरण से की बातों में काफ़ी विषमता दिख जाती है।राम चरित मानस के अनुसार यही जानकारी मिलती है कि रावण साधु का भेष बनकर आया था और सिद्धा लेने के बहाने सीता जी का हरण किया था। इसी लिए आप को बताया कि आप इसे बस novel समझ कर पढ़े।

रानी सुनयना को एक बच्ची की प्राप्ति

ऐसे ही और भी बहुत सारे संदर्भो में ऐसी विषमता देखने को मिलती है। जैसे दूसरे अध्याय में मिथीला के राजा जनक को और उनकी पत्नी सुनयना को सीता जी मिलती हैं। जहाँ सभी जगहों पर इस बात का ज़िक्र मिलता है कि राजा जनक को हल चलाते वक्त सीता जी मिली थी, मगर इस किताब Sita Mithila ki ek yoddha” के अनुसार,रानी सुनयना ने दूर से देखा कि कुछ भेड़िये झुंड बनाकर खड़े हैं और बीच में एक अकेला गिद्ध खड़ा है जो बार बार भेड़ियों को पीछे ढकेल रहा था।

रानी सुनयना को ये लड़ाई तर्क संगत नहीं लगी। वो उस दिशा की तरफ़ अपने घोड़े को दौड़ा दी, साथ ही उनके मन में सवाल भी था, कि ये गिद्ध उड़ क्यों नहीं जाता। रानी सुनयना के पीछे पीछे उनके सैनिक भी आ रहे थे। घुड़सवारों की आवाज़ सुनकर सारे भेड़िये दुम दबा कर भाग गए। पास जाने पर रानी सुनयना ने देखा तो shocked रह गई। वहाँ एक शिशु था।जैसे ही सुनयना ने कपड़े की गठरी को खोला, उसमें एक बच्ची थी। राजा जनक ने बोला कितनी सुंदर बच्ची है। इस तरह से रानी सुनयना और राजा जनक को सीता जी मिलीं।

मंथरा की कहानी

इस किताब Sita Mithila ki ek yoddha” में बूढ़ी मंथरा, जो की कैकेयी की दासी है, उसे इस किताब में अयोध्या की एक धनी व्यापारी के रूप में दिखाया गया है, जो राम से बदला लेना चाहती है, क्यों कि उसकी अपनी एक बेटी थी, जिसका नाम रोशनी था, जिसके साथ बलात्कार और  बाद में हत्या कर दी गई थी।

उसके दोषी को न्यायालय ने सजा सुना कर फांसी का दंड दे दिया था, मगर धेनुका जो उसे समूह का नेता था, नाबालिक होने के चलते बच गया था। हालांकि मंथरा ने काफी पैसा खर्च करके धेनूका  को जेल के बाहर निकलवाया और बाद में उसकी हत्या करवा दी, लेकिन फिर भी वह राम के न्याय की वजह से राम से काफी नाराज थी। क्योंकि अयोध्या के कानून व्यवस्था के चलते उसे फांसी की सजा नहीं हुई थी। इसलिए वह राम से बदला लेना चाहती थी।ये बात भी रामायण में मौजूद नहीं है। रामायण में मंथरा को कैकई के दासी के रूप में दिखाया गया है।

सीता और उर्मिला का संवाद

“Sita Mithila ki yoddha” इस किताब में उर्मिला और सीता एक संवाद देखने को मिलता है जो की काफी हास्यास्पद अजीब लगा जब माता सीता वन में जाने की तैयारी कर रही होती है तभी उर्मिला उनके पास आती है और बोलती है कि पहले मां मुझे छोड़ कर चली गई और अब आप और लक्ष्मण मुझे छोड़ कर जा रहे हैं मैं क्या करूंगी सीता जी प्यार से अपनी बहन को समझाते हुए बोलती है कि “जंगल में रहने के लिए कोई छत नहीं होगा हमें जमीन पर रहना होगा और मांस खाना होगा और मैं जानती हूं कि तुम इसे कितनी नफरत करती हो।

जबकि सभी जगह इस बात का उल्लेख मिलता है कि सीता जी, राम और लक्ष्मण के साथ कंद फल फूल खाकर अपना निर्वाह कर रही थी।

“Sita Mithila ki yoddha” के अनुसार हनुमान जी का सीता जी से पहली बार मिलना

हनुमान का ज़िक्र भी बड़े रोचक ढंग से मिलता है।रानी सुनयना और राजा जनक ने सीता की शिक्षा के लिए ऋषि श्वेतकेतु का गुरुकुल चुना था। सीता को श्वेतकेतु के गुरुकुल में एक अच्छी सहेली मिली। उसका नाम राधिका था। राधिका से मिलने के लिए एक बार उसके हनु भैया आए थे। राधिका सीता को भी अपने साथ ले गई थी। मिलने की जगह गुरुकुल से लगभग एक घंटे की दूरी पर थी। वहीं पर सीता पहली बार राधिका के हनु भैया से यानि हनुमान जी से पहली बार मिली।जब कि धार्मिक ग्रंथों के हिसाब से हनुमान जी सीता जी से पहली बार रावण के अशोक वाटिका में पहली बार मिलें।

राम और विभीषण का प्रथम बार मिलना

राम के सामने विभीषण के आने की भी एक दिलचस्प कहानी है रामायण के अनुसार जब सीता का अपहरण हो जाता है और सीता लंका में रहती हैं तब युद्ध से कुछ समय पहले विभीषण लंका को छोड़कर राम के पास आ जाते हैं जबकि इस किताब के हिसाब से विभीषण राम के वनवास के समय राम के सामने आते हैं और वह भी अपनी बहन सुपणखा के साथ। उस समय सीता भी राम जी के साथ रहती हैं। इसी समय लक्ष्मण सुपणखा का नाक काटते हैं जिसका प्रसंग भी एकदम अलग है।

Conclusion

यह किताबSita Mithila ki ek yoddha” निश्चित रूप से पढ़ने में काफ़ी मनोरंजक लगती है।इस किताब में कहानी कहने के लिए अमीश ने हाइपरलिंक तकनीक का इस्तेमाल किया है। इससे कहानी का प्रस्तुतिकरण काफी रोचक हो जाता है। हाइपरलिंक शैली में कहानी, कहानी के विभिन्न पात्रों के माध्यम से बताई जाती है जो कि एक सूत्र की तरह आपस में जुड़े होता हैं।कई लोग इस हाइपरलिंक तकनीक को बहुरेखीय बयानगी भी कहते हैं। बहुरेखीय बयानगी मतलब कई चरित्र को एक सूत्र में लाना। जो कहानी को रोचक और आकर्षक बनाता है।

कहानी प्रस्तुतिकरण के हिसाब से अमीश जी का कोई जवाब नहीं। जो लोग रामायण को एक कहानी के रूप में देखते है, उनके लिए यह किताब बहुत ही अदभुत है। उनके सामने रामायण की एक अलग ही तस्वीर प्रस्तुत करने वाली है यह किताब, जो कि रहस्य और रोमांच से भरी हुई है।

लेकिन जिनको रामायण के बारे में कोई जानकारी नहीं हैं,और वो सही जानकारी चाहते हैं और साथ में इस किताब को भी पढ़ना चाहते हैं,  उन लोंगो के ख़ास ज़रूरी है कि इस किताब Sita Mithila ki yoddha” को पढ़ने से पहले वाल्मीकि रामायण या तुलसी दास द्वारा रचित रामचरित मानस को ज़रूर पढ़े। 

अमीश त्रिपाठी की किताब पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

  1. Sita Mithila ki yoddha

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