Tulsidas ji ka jeevan parichay aur unki rachnayen

गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन परिचय

इस लेख में आप सभी को Tulsidas ji ka jeevan parichay मिलने वाला है। भारत की भारत की पवित्र भूमि पर समय-समय पर एक से एक महान संतों ने जन्म लिया, जिन्होंने मानव कल्याण और समाज कल्याण हेतु अपने जीवन को समर्पित कर दिया। इस कार्य हेतु उनका माध्यम जो भी रहा हो।ऐसे ही महान संतों में एक थे गोस्वामी तुलसीदास जी। जिन्होंने आसान पद्य रचना के माध्यम से आम जनमानस के समक्ष, धर्म के ऐसे स्वरूप को प्रस्तुत किया जिसका लाभ आगे आने वाले हज़ारों लाखों वर्षों तो सभी लोग इसका लाभ उठा सके।

साथ ही जो रामायण पहले संस्कृत भाषा में थी, उस रामायण को भी और सरल शब्दों में सबके सामने प्रस्तुत किया ताकि आम जनमानस भी भगवान राम के चरित्र से प्रेरित होकर अपने अंदर भगवान राम के अच्छे गुणों को डाल सके। शायद ही इस धरती पर कोई ऐसा सनातनी हो जिसने गोस्वामी तुलसीदास जी का नाम नहीं सुना हो। आज मैं आपको गोस्वामी तुलसीदास जी के जीवन के बारे में इस लेख के माध्यम से कुछ जानकारी देने वाला हूं।

तुलसीदास का जीवन परिचय और उनकी रचनाएँ
तुलसीदास का जीवन परिचय और उनकी रचनाएँ____________

तुलसीदास जी का जन्म

तुलसीदास जी का जन्म और मृत्यु समय विवादित रहा है। अलग अलग जगहों पर अलग-अलग साक्ष्य दिए गए हैं। गीता प्रेस के श्री रामचरितमानस के अनुसार, उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले में एक राजापुर नाम का एक ग्राम है। पौराणिक ग्रंथों के हिसाब से वहां पर एक आत्माराम दुबे नाम के एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण रहा करते थे। उनकी पत्नी हुलसी के गर्भ से 1554 में श्रावण के शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन तुलसीदास जी का जन्म हुआ। जन्म के समय तुलसीदास सामान्य बच्चों की तरह नहीं थे। उनके इस रूप को देखकर के उनके पिता किसी अमंगल की आशंका से भयभीत हो गए और माता तुलसी को भी यह सब देखकर बड़ी चिंता हो रही थी। उन्होंने अपनी दासी चुनियाँ को बुलाया और उसे अपने  बच्चों को सौंप दिया और बोला कि वो उस बच्चे का पालन-पोषण करे। बच्चे को सौंपने के दूसरे दिन ही माता हुलसी इस दुनिया से चल बसी । चुनियाँ ने उसे बच्चों को बड़े प्यार से पालन पोषण कर रही थी।

तुलसीदास जी का बचपन

चुनियाँ बड़े अच्छे से अपने बच्चों को पाल पोस रही थी और अपने बच्चों के साथ खुशी का जीवन जी रही थी, मगर कुदरत को कुछ और ही मंजूर था । जब तुलसीदास की अवस्था लगभग साढ़े पांच वर्ष की थी, तो उस समय उनकी माता चुनियाँ इस दुनिया को छोड़कर कर चल बसी। तुलसीदास जी इस छोटी सी अवस्था में अकेले रह गए। फिर भगवान शंकर की कृपा से श्री नरहर्या नंद जी ने इस बालों को ढूंढ निकाला और उसका नाम राम बोला रखा और उसे अपने साथ अयोध्या ले गए।बचपन में तुलसी दास जी को राम बोला के नाम से जानते थे। 

तुलसीदास जी की शिक्षा-दीक्षा

तुलसीदास जी की प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा अयोध्या में ही हुई। बालक रामबोला की बुद्धि बड़ी ही तेज थी। जो भी बात वह अपने गुरु मुख से सुन लेते थे वह उनको हमेशा याद रहता था अयोध्या में प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद वह काशी चले गए वहां पर वह शेष सनातन जी के पास रहकर लगभग 15 वर्ष तक वेद वेदांत का अध्ययन किया। फिर वह अपने गुरु से आज्ञा लेकर के अपने जन्मभूमि चित्रकूट वापस आ गए और वहीं पर रहकर के सभी लोगों को भगवान राम की कथा सुनाने लगे।

तुलसीदास जी का विवाह

तुलसीदास जी का विवाह संवत 1583 के ज्येष्ठ शुक्ला को भारद्वाज गोत्र की एक सुंदर कन्या रत्नावली के साथ हुआ था। वे बहुत सुखी पूर्वक अपनी पत्नी के साथ वैवाहिक जीवन का निर्वाह कर रहे थे। एक बार उनकी पत्नी अपने भाई के साथ मायके चली गई।तुलसीदास पत्नी के वियोग को सह ना सके और उनके जाने के बाद पीछे पीछे तुलसीदास जी भी अपनी पत्नी के मायके पहुंच गए। वहां गुस्से में उनकी पत्नी ने उन्हें बहुत धिक्कारा और उनसे बोली, ‘मेरे इस हार्ड मांस के शरीर में जितनी तुम्हारी आसक्ति है उससे आधी भी यदि भगवान में होती तो तुम्हारा बेड़ा पार हो गया होता’। 

यह बात तुलसीदास जी को बहुत बुरी लगी उन्होंने एक क्षण भी नहीं लगाया और तुरंत वहां से चले गए वहां से तुलसीदास जी प्रयाग आए और प्रयाग में उन्होंने गृहस्थ वेश का त्याग करके साधु का वेश धारण कर लिया। वहां से वह काशी गए और काशी में तुलसीदास जी ने राम कथा कहना प्रारंभ किया।

तुलसीदास जी को हनुमान जी का दर्शन

काशी में तुलसीदास जी राम कथा कहते रहे ।वहां उन्हें एक दिन एक प्रेत मिला। उस प्रेत ने बातचीत के दौरान तुलसीदास जी को हनुमान का पता बताया। तुलसीदास जी राम के दर्शन की मन में आस लिए हनुमान जी से मिलने चले गए। हनुमान जी से मिलने के बाद उन्होंने राम जी से मिलने की इच्छा जाहिर की, तब हनुमान जी ने बोला तुम चित्रकूट जाओ वहां पर तुम्हें भगवान राम के दर्शन होंगे। तुलसीदास जी ने बिना कुछ समय गंवाए  तुरंत चित्रकूट के लिए प्रस्थान कर गए।

तुलसीदास जी को भगवान राम का दर्शन प्राप्त होना

चित्रकूट पहुंचने के बाद रामघाट पर ही तुलसीदास जी ने अपना आसन जमा लिया। वहीं पर एक बार घूमते हुए उनको भगवान राम के दर्शन हुए मगर अज्ञानता वश वे भगवान राम को पहचान ना सके। बाद में हनुमान जी ने उनको बताया कि जिस दो राजकुमार को उन्होंने देखा था वह भगवान राम ही थे और साथ में लक्ष्मण थे। ये बात सुनकर  तुलसीदास जी को बहुत पश्चात होने लगा कि  वे अपने प्रभु को पहचान ना सकें। तब हनुमान जी ने कहा, तुम चिंता मत करो, कल प्रातः काल प्रभु फिर से दर्शन देंगे।

दूसरे दिन प्रात काल संवत 1607 की मौनी अमावस्या के दिन भगवान राम उनके सामने पुनः प्रकट हुए । उन्होंने बालक का रूप धारण कर रखा था। भगवान राम ने तुलसीदास जी से कहा बाबा हमें चंदन दो। हनुमान जी ने विचार किया कहीं इस बार वे फिर से धोखा ना खा जाए इसलिए हनुमान जी ने एक तोते का रूप धारण किया और यह दोहा कहा – 

चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीड़, तुलसीदास चंदन घिसे तिलक देते रघुवीर।

तुलसीदास जी तुरंत इस दोहे का मतलब समझ गए वह अविरल उस अदभूत छवि को निहारते रहे और खुद अपनी सुधि भूल गए। भगवान ने अपने हाथ से चंदन लेकर अपने तथा तुलसीदास जी के मस्तक पर लगाया और उसके बाद फिर वह अंतर ध्यान हो गए।

तुलसीदास जी द्वारा राम चरित मानस की रचना

हनुमान जी की आज्ञा से तुलसीदास अयोध्या लौट आए वहां पर कुछ समय रहने के पश्चात वह काशी आ गए। काशी के प्रहलाद घाट पर वे एक ब्राह्मण के यहां निवास किए और वहीं पर उनके अंदर कविता लिखने की शक्ति का संचार हुआ। वे संस्कृत में पद्य की रचना करने लगे। लेकिन वह जो भी वह पद्य की रचना करते, रात्रि में वह विलुप्त हो जाती। तुलसी दास जी को इसका कारण समझ में नहीं आ रहा था। फिर एक दिन स्वप्न में भगवान शिव और माता पार्वती ने उनको दर्शन दिया और उनसे कहा कि “तुम अपने भाषा में काव्य की रचना करो” । तुलसीदास जी की नींद तुरंत खुल गई जैसे उनकी नींद खुली उन्होंने अपने सामने माता पार्वती और भगवान शिव को दिखा। उन्होंने दंडवत प्रणाम किया। तब भगवान शिव ने उन्हें आदेश दिया तुम अयोध्या जाकर रहो और वहीं पर हिंदी में काव्य की रचना करो।  फिर तुलसीदास काशी से अयोध्या चले गए। 

अयोध्या जाकर तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस की रचना प्रारंभ का दी ।रामचरितमानस की रचना पूर्ण होने में लगभग 2 वर्ष 7 महीने और 26 दिन में राम विवाह के दिन सातों कांड पूर्ण हो गए। श्री रामचरितमानस की रचना पूर्ण होने के बाद वे अयोध्या से काशी आ गए। काशी में एक रात को भगवान विश्वनाथ जी के मंदिर में श्री रामचरितमानस को रख दिया गया और  जब सवेरे मंदिर का द्वार खोला गया तो श्री रामचरितमानस पर लिखा हुआ था  “सत्यम शिवम सुंदरम”। इस घटना से पंडितों के मन में ईर्ष्या होने लगी वह तुलसीदास जी की निंदा करने लगे। पुस्तक को नष्ट करने के लिए उन्होंने एक बार दो चोर को भेजा मगर चोरों ने देखा कि तुलसीदास की कुतिया के बाहर दो वीर धनुष बाण लिए पहरा दे रहे हैं। उनके दर्शन करके चोरों की बुद्धि शुद्ध होगी और वह जो है वापस चले गए।  

मगर इस घटना से भी पंडितों के मन को संतोष नहीं हुआ। उन्होंने एक अलग तरीके से पुस्तक की परीक्षा का उपाय सोचा। उन्होंने भगवान भगवान विश्वनाथ की मंदिर में सबसे ऊपर वेद को रखा, उसके नीचे शास्त्र, शास्त्र के नीचे पुराण को रखा और सबसे नीचे रामचरितमानस को रख दिया। फिर मंदिर का द्वार बंद कर दिया गया और जब सुबह प्रातः काल मंदिर का द्वार खोला गया तो लोगों ने देखा कि श्री रामचरितमानस वेदों के ऊपर रखा हुआ है। इससे सभी पंडित काफी अचंभित हुए और बड़े लज्जित भी। उन्होंने तुलसीदास जी से क्षमा मांगी l

तुलसीदास जी की रचनायें

अपने जीवन काल में तुलसीदास जी ने बहुत सारे काव्य रचनायें की।उनकी सारी रचनाओं ने अपनी अच्छी ख़ासी जगह बना रखी है। जिनमें से कई सारी रचनायें तो हर सनातनी हिंदू के घर में मिल जायेगी। उनकी प्रमुख रचनायें इस प्रकार है।

रामचरितमानस, विनय-पत्रिका, कवितावली, गीतावली, श्रीकृष्ण-गीतावली, हनुमान चालीसा, हनुमान बाहुक, संकट मोचन, हनुमान आरती, इन सब के अलावा और भी कई सारी रचनायें तुलसीदास जी ने लिखी है।

उसके बाद तुलसीदास जी अस्सी घाट पर रहने लगे। वहां पर रहते हुए उन्होंने बहुत सारी काव्य रचना की और फिर संवत 1680 में अस्सी घाट पर ही गोस्वामी तुलसीदास ने राम-राम कहते हुए अपने शरीर का परित्याग कर दिया।

यह तुलसीदास जी के जीवन से जुड़ी हुई कुछ रोचक बातें थी इसी क्रम में आगे आपको रामचरितमानस से जुड़ी विशेष जानकारी मिलेगी।

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